हो चुकी अब किसी और कि वो...
कभी मेरी ज़िंदगी थी वो...
भूलता है कौन अपनी पहली मुहब्बत को...?
मेरी तो सारी खुशी थी वो...
फूलों कि तरह मुस्कुराती थी वो...
मेरे होंठों कि हँसी थी वो...
मुद्दतों के बाद देखा है मैंने उसको...
आज भी उतनी हसीन दिखती है वो...
जिसके नाम मैंने अपनी ज़िंदगी कर दी...
लोग कहते हैं मेरे लिए अजनबी थी वो...
कभी मेरी ज़िंदगी थी वो...
भूलता है कौन अपनी पहली मुहब्बत को...?
मेरी तो सारी खुशी थी वो...
फूलों कि तरह मुस्कुराती थी वो...
मेरे होंठों कि हँसी थी वो...
मुद्दतों के बाद देखा है मैंने उसको...
आज भी उतनी हसीन दिखती है वो...
जिसके नाम मैंने अपनी ज़िंदगी कर दी...
लोग कहते हैं मेरे लिए अजनबी थी वो...
4 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर ....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,
अच्छा लिखा है ...!!
भावपूर्ण रचना क्या कहने...
बहुत ही सुन्दर..
भावविभोर करती रचना...
एक टिप्पणी भेजें
आप अपने बहुमूल्य शब्दों से इसको और सुसज्जित करें
धन्यवाद