आज बादलों के आगोश में चाँद को सोते देखा
सहमी-सहमी रात में तारों को रोते देखा
जिसे मैंने चाहा एक मुद्दत बीतने तक
आज मैंने उसे किसी और का होते देखा
जिसकी आरजू में मैंने एक उम्र गवां दी
उसे समंदर की गहराइयों में खोते देखा
जिस मोती को बनाकर रखा अपना मुकद्दर जानकार
ये "अनीश" किसी और को उसे अपने हार में पिरोते देखा
नीलकमल वैष्णव"अनीश"
6 टिप्पणियाँ:
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.
बहुत सुन्दर तथा सार्थक रचना , आभार
जिसकी आरजू में मैंने एक उम्र गवां दी
उसे समंदर की गहराइयों में खोते देखा.... bhaut pyari panktiya.....
jab dhokha milta hai dil u hi cheekhta hai.
samvedansheel abhivyakti.
आप सबके स्नेह से हमेशा मुझे बहुत खुशी मिलती है धन्यववाद आप सभी के आगमन का
बहुत ही उम्दा रचना,अद्भुत भावाभिव्यक्ति......शानदार....।
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धन्यवाद