एक दीप अँधेरे में ...
बरसों से मंदिर के कपाट में
एक दीप अँधेरे में जल रहा है
रोशनी की तलाश में भटककर खुद से लड़ रहा है
कितने दिन बीत गए ...
अपने रूप को , आईने में नही देख पाया
थोड़ा सा तेल
वहीं पुरानी बाती
उसी कपाट पर
बंद , पडा अपनी दशा से परेशान
फिर भी धीमें -धीमें जल रहा है
उस उजले दिन की इंतजार में
बुझता और जलता
नया सबेरा ढूंढ़ रहा है
बरसों से मंदिर की कपाट में
एक दीप अँधेरे में जल रहा है
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
8 टिप्पणियाँ:
Behtreen rachna padhwai...aabhar...
अच्छी लगी. शुभकामनाएं.
बहुत बढ़िया ! बेहतरीन प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
सुन्दर रचना सार्थक पोस्ट ,बधाई
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .
बहुत खूब .....
शुभकामनायें आपको !
बहुत खूब गहरे अर्थ लिए बढ़िया प्रस्तुति समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपजा स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! और शानदार प्रस्तुती!
मैं आपके ब्लॉग पे देरी से आने की वजह से माफ़ी चाहूँगा मैं वैष्णोदेवी और सालासर हनुमान के दर्शन को गया हुआ था और आप से मैं आशा करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे आके मुझे आपने विचारो से अवगत करवाएंगे और मेरे ब्लॉग के मेम्बर बनकर मुझे अनुग्रहित करे
आपको एवं आपके परिवार को क्रवाचोथ की हार्दिक शुभकामनायें!
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
अँधेरा हरता रहे दीप!
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आप अपने बहुमूल्य शब्दों से इसको और सुसज्जित करें
धन्यवाद